Daily Hukamnama Sahib from Sri Darbar Sahib, Sri Amritsar
Saturday, 26 February 2022
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ – ਅੰਗ 755
Raag Soohee – Ang 755
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧੦ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ਦੁਨੀਆ ਨ ਸਾਲਾਹਿ ਜੋ ਮਰਿ ਵੰਞਸੀ ॥
ਲੋਕਾ ਨ ਸਾਲਾਹਿ ਜੋ ਮਰਿ ਖਾਕੁ ਥੀਈ ॥੧॥
ਵਾਹੁ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਵਾਹੁ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਦਾ ਸਲਾਹੀਐ ਸਚਾ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ਦੁਨੀਆ ਕੇਰੀ ਦੋਸਤੀ ਮਨਮੁਖ ਦਝਿ ਮਰੰਨਿ ॥
ਜਮ ਪੁਰਿ ਬਧੇ ਮਾਰੀਅਹਿ ਵੇਲਾ ਨ ਲਾਹੰਨਿ ॥੨॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਨਮੁ ਸਕਾਰਥਾ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਲਗੰਨਿ ॥
ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪ੍ਰਗਾਸਿਆ ਸਹਜੇ ਸੁਖਿ ਰਹੰਨਿ ॥੩॥
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਰਚੰਨਿ ॥
ਤਿਸਨਾ ਭੁਖ ਨ ਉਤਰੈ ਅਨਦਿਨੁ ਜਲਤ ਫਿਰੰਨਿ ॥੪॥
ਦੁਸਟਾ ਨਾਲਿ ਦੋਸਤੀ ਨਾਲਿ ਸੰਤਾ ਵੈਰੁ ਕਰੰਨਿ ॥
ਆਪਿ ਡੁਬੇ ਕੁਟੰਬ ਸਿਉ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਡੋਬੰਨਿ ॥੫॥
ਨਿੰਦਾ ਭਲੀ ਕਿਸੈ ਕੀ ਨਾਹੀ ਮਨਮੁਖ ਮੁਗਧ ਕਰੰਨਿ ॥
ਮੁਹ ਕਾਲੇ ਤਿਨ ਨਿੰਦਕਾ ਨਰਕੇ ਘੋਰਿ ਪਵੰਨਿ ॥੬॥
ਏ ਮਨ ਜੈਸਾ ਸੇਵਹਿ ਤੈਸਾ ਹੋਵਹਿ ਤੇਹੇ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥
ਆਪਿ ਬੀਜਿ ਆਪੇ ਹੀ ਖਾਵਣਾ ਕਹਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਇ ॥੭॥
ਮਹਾ ਪੁਰਖਾ ਕਾ ਬੋਲਣਾ ਹੋਵੈ ਕਿਤੈ ਪਰਥਾਇ ॥
ਓਇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭਰੇ ਭਰਪੂਰ ਹਹਿ ਓਨਾ ਤਿਲੁ ਨ ਤਮਾਇ ॥੮॥
ਗੁਣਕਾਰੀ ਗੁਣ ਸੰਘਰੈ ਅਵਰਾ ਉਪਦੇਸੇਨਿ ॥
ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿ ਓਨਾ ਮਿਲਿ ਰਹੇ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਲਏਨਿ ॥੯॥
ਦੇਸੀ ਰਿਜਕੁ ਸੰਬਾਹਿ ਜਿਨਿ ਉਪਾਈ ਮੇਦਨੀ ॥
ਏਕੋ ਹੈ ਦਾਤਾਰੁ ਸਚਾ ਆਪਿ ਧਣੀ ॥੧੦॥
ਸੋ ਸਚੁ ਤੇਰੈ ਨਾਲਿ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥
ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਮੇਲਿ ਲਏ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਸਮਾਲਿ ॥੧੧॥
ਮਨੁ ਮੈਲਾ ਸਚੁ ਨਿਰਮਲਾ ਕਿਉ ਕਰਿ ਮਿਲਿਆ ਜਾਇ ॥
ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਲੇ ਤਾ ਮਿਲਿ ਰਹੈ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਇ ॥੧੨॥
ਸੋ ਸਹੁ ਸਚਾ ਵੀਸਰੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਣੁ ਸੰਸਾਰਿ ॥
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਨਾ ਵੀਸਰੈ ਗੁਰਮਤੀ ਵੀਚਾਰਿ ॥੧੩॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਤਾ ਮਿਲਿ ਰਹਾ ਸਾਚੁ ਰਖਾ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
ਮਿਲਿਆ ਹੋਇ ਨ ਵੀਛੁੜੈ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰਿ ॥੧੪॥
ਪਿਰੁ ਸਾਲਾਹੀ ਆਪਣਾ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸੋਭਾਵੰਤੀ ਨਾਰਿ ॥੧੫॥
ਮਨਮੁਖ ਮਨੁ ਨ ਭਿਜਈ ਅਤਿ ਮੈਲੇ ਚਿਤਿ ਕਠੋਰ ॥
ਸਪੈ ਦੁਧੁ ਪੀਆਈਐ ਅੰਦਰਿ ਵਿਸੁ ਨਿਕੋਰ ॥੧੬॥
ਆਪਿ ਕਰੇ ਕਿਸੁ ਆਖੀਐ ਆਪੇ ਬਖਸਣਹਾਰੁ ॥
ਗੁਰਸਬਦੀ ਮੈਲੁ ਉਤਰੈ ਤਾ ਸਚੁ ਬਣਿਆ ਸੀਗਾਰੁ ॥੧੭॥
ਸਚਾ ਸਾਹੁ ਸਚੇ ਵਣਜਾਰੇ ਓਥੈ ਕੂੜੇ ਨਾ ਟਿਕੰਨਿ ॥
ਓਨਾ ਸਚੁ ਨ ਭਾਵਈ ਦੁਖ ਹੀ ਮਾਹਿ ਪਚੰਨਿ ॥੧੮॥
ਹਉਮੈ ਮੈਲਾ ਜਗੁ ਫਿਰੈ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥
ਪਇਐ ਕਿਰਤਿ ਕਮਾਵਣਾ ਕੋਇ ਨ ਮੇਟਣਹਾਰ ॥੧੯॥
ਸੰਤਾ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਰਹੈ ਤਾ ਸਚਿ ਲਗੈ ਪਿਆਰੁ ॥
ਸਚੁ ਸਲਾਹੀ ਸਚੁ ਮਨਿ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸਚਿਆਰੁ ॥੨੦॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਪੂਰੀ ਮਤਿ ਹੈ ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
ਹਉਮੈ ਮੇਰਾ ਵਡ ਰੋਗੁ ਹੈ ਵਿਚਹੁ ਠਾਕਿ ਰਹਾਇ ॥੨੧॥
ਗੁਰੁ ਸਾਲਾਹੀ ਆਪਣਾ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗਾ ਪਾਇ ॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਉਪੀ ਆਗੈ ਧਰੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥੨੨॥
ਖਿੰਚੋਤਾਣਿ ਵਿਗੁਚੀਐ ਏਕਸੁ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
ਹਉਮੈ ਮੇਰਾ ਛਡਿ ਤੂ ਤਾ ਸਚਿ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੨੩॥
ਸਤਿਗੁਰ ਨੋ ਮਿਲੇ ਸਿ ਭਾਇਰਾ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਲਗੰਨਿ ॥
ਸਚਿ ਮਿਲੇ ਸੇ ਨ ਵਿਛੁੜਹਿ ਦਰਿ ਸਚੈ ਦਿਸੰਨਿ ॥੨੪॥
ਸੇ ਭਾਈ ਸੇ ਸਜਣਾ ਜੋ ਸਚਾ ਸੇਵੰਨਿ ॥
ਅਵਗਣ ਵਿਕਣਿ ਪਲੑਰਨਿ ਗੁਣ ਕੀ ਸਾਝ ਕਰੰਨਿੑ ॥੨੫॥
ਗੁਣ ਕੀ ਸਾਝ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਸਚੀ ਭਗਤਿ ਕਰੇਨਿ ॥
ਸਚੁ ਵਣੰਜਹਿ ਗੁਰਸਬਦ ਸਿਉ ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਲਏਨਿ ॥੨੬॥
ਸੁਇਨਾ ਰੁਪਾ ਪਾਪ ਕਰਿ ਕਰਿ ਸੰਚੀਐ ਚਲੈ ਨ ਚਲਦਿਆ ਨਾਲਿ ॥
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਨਾਲਿ ਨ ਚਲਸੀ ਸਭ ਮੁਠੀ ਜਮਕਾਲਿ ॥੨੭॥
ਮਨ ਕਾ ਤੋਸਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਹਿਰਦੈ ਰਖਹੁ ਸਮੑਾਲਿ ॥
ਏਹੁ ਖਰਚੁ ਅਖੁਟੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਬਹੈ ਨਾਲਿ ॥੨੮॥
ਏ ਮਨ ਮੂਲਹੁ ਭੁਲਿਆ ਜਾਸਹਿ ਪਤਿ ਗਵਾਇ ॥
ਇਹੁ ਜਗਤੁ ਮੋਹਿ ਦੂਜੈ ਵਿਆਪਿਆ ਗੁਰਮਤੀ ਸਚੁ ਧਿਆਇ ॥੨੯॥
ਹਰਿ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਹਰਿ ਜਸੁ ਲਿਖਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਰਪੈ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੩੦॥
ਸੋ ਸਹੁ ਮੇਰਾ ਰੰਗੁਲਾ ਰੰਗੇ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
ਕਾਮਣਿ ਰੰਗੁ ਤਾ ਚੜੈ ਜਾ ਪਿਰ ਕੈ ਅੰਕਿ ਸਮਾਇ ॥੩੧॥
ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨੇ ਭੀ ਮਿਲਨਿ ਜੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੰਨਿ ॥
ਅੰਤਰਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਖਾਨਿ ਖਰਚਨਿ ਨ ਨਿਖੁਟਈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਸਹਜਿ ਰਵੰਨਿ ॥੩੨॥
ਨਾ ਓਇ ਜਨਮਹਿ ਨਾ ਮਰਹਿ ਨਾ ਓਇ ਦੁਖ ਸਹੰਨਿ ॥
ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਸੇ ਉਬਰੇ ਹਰਿ ਸਿਉ ਕੇਲ ਕਰੰਨਿ ॥੩੩॥
ਸਜਣ ਮਿਲੇ ਨ ਵਿਛੁੜਹਿ ਜਿ ਅਨਦਿਨੁ ਮਿਲੇ ਰਹੰਨਿ ॥
ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਵਿਰਲੇ ਜਾਣੀਅਹਿ ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਲਹੰਨਿ ॥੩੪॥੧॥੩॥
English Transliteration:
raag soohee mahalaa 3 ghar 10 |
ik oankaar satigur prasaad |
duneea na saalaeh jo mar vanyasee |
lokaa na saalaeh jo mar khaak theeee |1|
vaahu mere saahibaa vaahu |
guramukh sadaa salaaheeai sachaa veparavaahu |1| rahaau |
duneea keree dosatee manamukh dajh maran |
jam pur badhe maareeeh velaa na laahan |2|
guramukh janam sakaarathaa sachai sabad lagan |
aatam raam pragaasiaa sahaje sukh rahan |3|
gur kaa sabad visaariaa doojai bhaae rachan |
tisanaa bhukh na utarai anadin jalat firan |4|
dusattaa naal dosatee naal santaa vair karan |
aap ddube kuttanb siau sagale kul ddoban |5|
nindaa bhalee kisai kee naahee manamukh mugadh karan |
muh kaale tin nindakaa narake ghor pavan |6|
e man jaisaa seveh taisaa hoveh tehe karam kamaae |
aap beej aape hee khaavanaa kahanaa kichhoo na jaae |7|
mahaa purakhaa kaa bolanaa hovai kitai parathaae |
oe amrit bhare bharapoor heh onaa til na tamaae |8|
gunakaaree gun sangharai avaraa upadesen |
se vaddabhaagee ji onaa mil rahe anadin naam len |9|
desee rijak sanbaeh jin upaaee medanee |
eko hai daataar sachaa aap dhanee |10|
so sach terai naal hai guramukh nadar nihaal |
aape bakhase mel le so prabh sadaa samaal |11|
man mailaa sach niramalaa kiau kar miliaa jaae |
prabh mele taa mil rahai haumai sabad jalaae |12|
so sahu sachaa veesarai dhrig jeevan sansaar |
nadar kare naa veesarai guramatee veechaar |13|
satigur mele taa mil rahaa saach rakhaa ur dhaar |
miliaa hoe na veechhurrai gur kai het piaar |14|
pir saalaahee aapanaa gur kai sabad veechaar |
mil preetam sukh paaeaa sobhaavantee naar |15|
manamukh man na bhijee at maile chit katthor |
sapai dudh peeaeeai andar vis nikor |16|
aap kare kis aakheeai aape bakhasanahaar |
gurasabadee mail utarai taa sach baniaa seegaar |17|
sachaa saahu sache vanajaare othai koorre naa ttikan |
onaa sach na bhaavee dukh hee maeh pachan |18|
haumai mailaa jag firai mar jamai vaaro vaar |
peiai kirat kamaavanaa koe na mettanahaar |19|
santaa sangat mil rahai taa sach lagai piaar |
sach salaahee sach man dar sachai sachiaar |20|
gur poore pooree mat hai ahinis naam dhiaae |
haumai meraa vadd rog hai vichahu tthaak rahaae |21|
gur saalaahee aapanaa niv niv laagaa paae |
tan man saupee aagai dharee vichahu aap gavaae |22|
khinchotaan vigucheeai ekas siau liv laae |
haumai meraa chhadd too taa sach rahai samaae |23|
satigur no mile si bhaaeiraa sachai sabad lagan |
sach mile se na vichhurreh dar sachai disan |24|
se bhaaee se sajanaa jo sachaa sevan |
avagan vikan palaran gun kee saajh karana |25|
gun kee saajh sukh aoopajai sachee bhagat karen |
sach vananjeh gurasabad siau laahaa naam len |26|
sueinaa rupaa paap kar kar sancheeai chalai na chaladiaa naal |
vin naavai naal na chalasee sabh mutthee jamakaal |27|
man kaa tosaa har naam hai hiradai rakhahu samaal |
ehu kharach akhutt hai guramukh nibahai naal |28|
e man moolahu bhuliaa jaaseh pat gavaae |
eihu jagat mohi doojai viaapiaa guramatee sach dhiaae |29|
har kee keemat naa pavai har jas likhan na jaae |
gur kai sabad man tan rapai har siau rahai samaae |30|
so sahu meraa rangulaa range sehaj subhaae |
kaaman rang taa charrai jaa pir kai ank samaae |31|
chiree vichhune bhee milan jo satigur sevan |
antar nav nidh naam hai khaan kharachan na nikhuttee har gun sehaj ravan |32|
naa oe janameh naa mareh naa oe dukh sahan |
gur raakhe se ubare har siau kel karan |33|
sajan mile na vichhurreh ji anadin mile rahan |
eis jag meh virale jaaneeeh naanak sach lahan |34|1|3|
Devanagari:
रागु सूही महला ३ घरु १० ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
दुनीआ न सालाहि जो मरि वंञसी ॥
लोका न सालाहि जो मरि खाकु थीई ॥१॥
वाहु मेरे साहिबा वाहु ॥
गुरमुखि सदा सलाहीऐ सचा वेपरवाहु ॥१॥ रहाउ ॥
दुनीआ केरी दोसती मनमुख दझि मरंनि ॥
जम पुरि बधे मारीअहि वेला न लाहंनि ॥२॥
गुरमुखि जनमु सकारथा सचै सबदि लगंनि ॥
आतम रामु प्रगासिआ सहजे सुखि रहंनि ॥३॥
गुर का सबदु विसारिआ दूजै भाइ रचंनि ॥
तिसना भुख न उतरै अनदिनु जलत फिरंनि ॥४॥
दुसटा नालि दोसती नालि संता वैरु करंनि ॥
आपि डुबे कुटंब सिउ सगले कुल डोबंनि ॥५॥
निंदा भली किसै की नाही मनमुख मुगध करंनि ॥
मुह काले तिन निंदका नरके घोरि पवंनि ॥६॥
ए मन जैसा सेवहि तैसा होवहि तेहे करम कमाइ ॥
आपि बीजि आपे ही खावणा कहणा किछू न जाइ ॥७॥
महा पुरखा का बोलणा होवै कितै परथाइ ॥
ओइ अंम्रित भरे भरपूर हहि ओना तिलु न तमाइ ॥८॥
गुणकारी गुण संघरै अवरा उपदेसेनि ॥
से वडभागी जि ओना मिलि रहे अनदिनु नामु लएनि ॥९॥
देसी रिजकु संबाहि जिनि उपाई मेदनी ॥
एको है दातारु सचा आपि धणी ॥१०॥
सो सचु तेरै नालि है गुरमुखि नदरि निहालि ॥
आपे बखसे मेलि लए सो प्रभु सदा समालि ॥११॥
मनु मैला सचु निरमला किउ करि मिलिआ जाइ ॥
प्रभु मेले ता मिलि रहै हउमै सबदि जलाइ ॥१२॥
सो सहु सचा वीसरै ध्रिगु जीवणु संसारि ॥
नदरि करे ना वीसरै गुरमती वीचारि ॥१३॥
सतिगुरु मेले ता मिलि रहा साचु रखा उर धारि ॥
मिलिआ होइ न वीछुड़ै गुर कै हेति पिआरि ॥१४॥
पिरु सालाही आपणा गुर कै सबदि वीचारि ॥
मिलि प्रीतम सुखु पाइआ सोभावंती नारि ॥१५॥
मनमुख मनु न भिजई अति मैले चिति कठोर ॥
सपै दुधु पीआईऐ अंदरि विसु निकोर ॥१६॥
आपि करे किसु आखीऐ आपे बखसणहारु ॥
गुरसबदी मैलु उतरै ता सचु बणिआ सीगारु ॥१७॥
सचा साहु सचे वणजारे ओथै कूड़े ना टिकंनि ॥
ओना सचु न भावई दुख ही माहि पचंनि ॥१८॥
हउमै मैला जगु फिरै मरि जंमै वारो वार ॥
पइऐ किरति कमावणा कोइ न मेटणहार ॥१९॥
संता संगति मिलि रहै ता सचि लगै पिआरु ॥
सचु सलाही सचु मनि दरि सचै सचिआरु ॥२०॥
गुर पूरे पूरी मति है अहिनिसि नामु धिआइ ॥
हउमै मेरा वड रोगु है विचहु ठाकि रहाइ ॥२१॥
गुरु सालाही आपणा निवि निवि लागा पाइ ॥
तनु मनु सउपी आगै धरी विचहु आपु गवाइ ॥२२॥
खिंचोताणि विगुचीऐ एकसु सिउ लिव लाइ ॥
हउमै मेरा छडि तू ता सचि रहै समाइ ॥२३॥
सतिगुर नो मिले सि भाइरा सचै सबदि लगंनि ॥
सचि मिले से न विछुड़हि दरि सचै दिसंनि ॥२४॥
से भाई से सजणा जो सचा सेवंनि ॥
अवगण विकणि पलरनि गुण की साझ करंनि ॥२५॥
गुण की साझ सुखु ऊपजै सची भगति करेनि ॥
सचु वणंजहि गुरसबद सिउ लाहा नामु लएनि ॥२६॥
सुइना रुपा पाप करि करि संचीऐ चलै न चलदिआ नालि ॥
विणु नावै नालि न चलसी सभ मुठी जमकालि ॥२७॥
मन का तोसा हरि नामु है हिरदै रखहु समालि ॥
एहु खरचु अखुटु है गुरमुखि निबहै नालि ॥२८॥
ए मन मूलहु भुलिआ जासहि पति गवाइ ॥
इहु जगतु मोहि दूजै विआपिआ गुरमती सचु धिआइ ॥२९॥
हरि की कीमति ना पवै हरि जसु लिखणु न जाइ ॥
गुर कै सबदि मनु तनु रपै हरि सिउ रहै समाइ ॥३०॥
सो सहु मेरा रंगुला रंगे सहजि सुभाइ ॥
कामणि रंगु ता चड़ै जा पिर कै अंकि समाइ ॥३१॥
चिरी विछुंने भी मिलनि जो सतिगुरु सेवंनि ॥
अंतरि नव निधि नामु है खानि खरचनि न निखुटई हरि गुण सहजि रवंनि ॥३२॥
ना ओइ जनमहि ना मरहि ना ओइ दुख सहंनि ॥
गुरि राखे से उबरे हरि सिउ केल करंनि ॥३३॥
सजण मिले न विछुड़हि जि अनदिनु मिले रहंनि ॥
इसु जग महि विरले जाणीअहि नानक सचु लहंनि ॥३४॥१॥३॥
Hukamnama Sahib Translations
English Translation:
Raag Soohee, Third Mehl, Tenth House:
One Universal Creator God. By The Grace Of The True Guru:
Do not praise the world; it shall simply pass away.
Do not praise other people; they shall die and turn to dust. ||1||
Waaho! Waaho! Hail, hail to my Lord and Master.
As Gurmukh, forever praise the One who is forever True, Independent and Carefree. ||1||Pause||
Making worldly friendships, the self-willed manmukhs burn and die.
In the City of Death, they are bound and gagged and beaten; this opportunity shall never come again. ||2||
The lives of the Gurmukhs are fruitful and blessed; they are committed to the True Word of the Shabad.
Their souls are illuminated by the Lord, and they dwell in peace and pleasure. ||3||
Those who forget the Word of the Guru’s Shabad are engrossed in the love of duality.
Their hunger and thirst never leave them, and night and day, they wander around burning. ||4||
Those who make friendships with the wicked, and harbor animosity to the Saints,
shall drown with their families, and their entire lineage shall be obliterated. ||5||
It is not good to slander anyone, but the foolish, self-willed manmukhs still do it.
The faces of the slanderers turn black, and they fall into the most horrible hell. ||6||
O mind, as you serve, so do you become, and so are the deeds that you do.
Whatever you yourself plant, that is what you shall have to eat; nothing else can be said about this. ||7||
The speech of the great spiritual beings has a higher purpose.
They are filled to over-flowing with Ambrosial Nectar, and they have absolutely no greed at all. ||8||
The virtuous accumulate virtue, and teach others.
Those who meet with them are so very fortunate; night and day, they chant the Naam, the Name of the Lord. ||9||
He who created the Universe, gives sustenance to it.
The One Lord alone is the Great Giver. He Himself is the True Master. ||10||
That True Lord is always with you; the Gurmukh is blessed with His Glance of Grace.
He Himself shall forgive you, and merge you into Himself; forever cherish and contemplate God. ||11||
The mind is impure; only the True Lord is pure. So how can it merge into Him?
God merges it into Himself, and then it remains merged; through the Word of His Shabad, the ego is burnt away. ||12||
Cursed is the life in this world, of one who forgets her True Husband Lord.
The Lord grants His Mercy, and she does not forget Him, if she contemplates the Guru’s Teachings. ||13||
The True Guru unites her, and so she remains united with Him, with the True Lord enshrined within her heart.
And so united, she will not be separated again; she remains in the love and affection of the Guru. ||14||
I praise my Husband Lord, contemplating the Word of the Guru’s Shabad.
Meeting with my Beloved, I have found peace; I am His most beautiful and happy soul-bride. ||15||
The mind of the self-willed manmukh is not softened; his consciousness is totally polluted and stone-hearted.
Even if the venomous snake is fed on milk, it shall still be filled with poison. ||16||
He Himself does – who else should I ask? He Himself is the Forgiving Lord.
Through the Guru’s Teachings, filth is washed away, and then, one is embellished with the ornament of Truth. ||17||
True is the Banker, and True are His traders. The false ones cannot remain there.
They do not love the Truth – they are consumed by their pain. ||18||
The world wanders around in the filth of egotism; it dies, and is re-born, over and again.
He acts in accordance with the karma of his past actions, which no one can erase. ||19||
But if he joins the Society of the Saints, then he comes to embrace love for the Truth.
Praising the True Lord with a truthful mind, he becomes true in the Court of the True Lord. ||20||
The Teachings of the Perfect Guru are perfect; meditate on the Naam, the Name of the Lord, day and night.
Egotism and self-conceit are terrible diseases; tranquility and stillness come from within. ||21||
I praise my Guru; bowing down to Him again and again, I fall at His Feet.
I place my body and mind in offering unto Him, eradicating self-conceit from within. ||22||
Indecision leads to ruin; focus your attention on the One Lord.
Renounce egotism and self-conceit, and remain merged in Truth. ||23||
Those who meet with the True Guru are my Siblings of Destiny; they are committed to the True Word of the Shabad.
Those who merge with the True Lord shall not be separated again; they are judged to be True in the Court of the Lord. ||24||
They are my Siblings of Destiny, and they are my friends, who serve the True Lord.
They sell off their sins and demerits like straw, and enter into the partnership of virtue. ||25||
In the partnership of virtue, peace wells up, and they perform true devotional worship service.
They deal in Truth, through the Word of the Guru’s Shabad, and they earn the profit of the Naam. ||26||
Gold and silver may be earned by committing sins, but they will not go with you when you die.
Nothing will go with you in the end, except the Name; all are plundered by the Messenger of Death. ||27||
The Lord’s Name is the nourishment of the mind; cherish it, and preserve it carefully within your heart.
This nourishment is inexhaustible; it is always with the Gurmukhs. ||28||
O mind, if you forget the Primal Lord, you shall depart, having lost your honor.
This world is engrossed in the love of duality; follow the Guru’s Teachings, and meditate on the True Lord. ||29||
The Lord’s value cannot be estimated; the Lord’s Praises cannot be written down.
When one’s mind and body are attuned to the Word of the Guru’s Shabad, one remains merged in the Lord. ||30||
My Husband Lord is playful; He has imbued me with His Love, with natural ease.
The soul-bride is imbued with His Love, when her Husband Lord merges her into His Being. ||31||
Even those who have been separated for so very long, are reunited with Him, when they serve the True Guru.
The nine treasures of the Naam, the Name of the Lord, are deep within the nucleus of the self; consuming them, they are still never exhausted. Chant the Glorious Praises of the Lord, with natural ease. ||32||
They are not born, and they do not die; they do not suffer in pain.
Those who are protected by the Guru are saved. They celebrate with the Lord. ||33||
Those who are united with the Lord, the True Friend, are not separated again; night and day, they remain blended with Him.
In this world, only a rare few are known, O Nanak, to have obtained the True Lord. ||34||1||3||
Punjabi Translation:
ਰਾਗ ਸੂਹੀ, ਘਰ ੧੦ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ।
ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਇੱਕ ਹੈ ਅਤੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਮਿਲਦਾ ਹੈ।
ਹੇ ਭਾਈ! ਦੁਨੀਆ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ਾਮਦ ਨਾਹ ਕਰਦਾ ਫਿਰ, ਦੁਨੀਆ ਤਾਂ ਨਾਸ ਹੋ ਜਾਇਗੀ।
ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਭੀ ਨਾਹ ਵਡਿਆਉਂਦਾ ਫਿਰ, ਖ਼ਲਕਤ ਭੀ ਮਰ ਕੇ ਮਿੱਟੀ ਹੋ ਜਾਇਗੀ ॥੧॥
ਹੇ ਮੇਰੇ ਮਾਲਕ! ਤੂੰ ਧੰਨ ਹੈਂ! ਤੂੰ ਹੀ ਸਲਾਹੁਣ-ਜੋਗ ਹੈਂ।
ਹੇ ਭਾਈ! ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਪੈ ਕੇ ਸਦਾ ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਜੋ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਅਤੇ ਜਿਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਦੀ ਮੁਥਾਜੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਤੁਰਨ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਦੁਨੀਆ ਦੀ ਮਿਤ੍ਰਤਾ ਵਿਚ ਹੀ ਸੜ ਮਰਦੇ ਹਨ (ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਸਾੜ ਕੇ ਸੁਆਹ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਅੰਤ)
ਜਮਰਾਜ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਚੋਟਾਂ ਖਾਂਦੇ ਹਨ। ਤਦੋਂ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ (ਹੱਥੋਂ ਖੁੰਝਿਆ ਹੋਇਆ ਮਨੁੱਖਾ ਜਨਮ ਦਾ) ਸਮਾ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ॥੨॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਪੈਂਦੇ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਸਫਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਦੀ ਬਾਣੀ ਵਿਚ ਜੁੜੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ।
ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਸਰਬ-ਵਿਆਪਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਪਰਕਾਸ਼ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਉਹ ਆਤਮਕ ਅਡੋਲਤਾ ਵਿਚ ਆਨੰਦ ਵਿਚ ਮਗਨ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ॥੩॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਭੁਲਾ ਦੇਂਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਮਸਤ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ,
ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰੋਂ ਮਾਇਆ ਦੀ ਤ੍ਰੇਹ ਭੁੱਖ ਦੂਰ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ, ਉਹ ਹਰ ਵੇਲੇ (ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੀ ਅੱਗ ਵਿਚ) ਸੜਦੇ ਫਿਰਦੇ ਹਨ ॥੪॥
ਅਜੇਹੇ ਮਨੁੱਖ ਭੈੜੇ ਬੰਦਿਆਂ ਨਾਲ ਮਿਤ੍ਰਤਾ ਗੰਢੀ ਰੱਖਦੇ ਹਨ, ਅਤੇ ਸੰਤ ਜਨਾਂ ਨਾਲ ਵੈਰ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ।
ਉਹ ਆਪ ਆਪਣੇ ਪਰਵਾਰ ਸਮੇਤ (ਸੰਸਾਰ-ਸਮੁੰਦਰ ਵਿਚ) ਡੁੱਬ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਆਪਣੀਆਂ ਕੁਲਾਂ ਨੂੰ ਭੀ (ਆਪਣੇ ਹੋਰ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਭੀ) ਨਾਲ ਹੀ ਡੋਬ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ॥੫॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਕਿਸੇ ਦੀ ਭੀ ਨਿੰਦਾ ਕਰਨੀ ਚੰਗਾ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਤੁਰਨ ਵਾਲੇ ਮੂਰਖ ਮਨੁੱਖ ਹੀ ਨਿੰਦਾ ਕਰਿਆ ਕਰਦੇ ਹਨ।
(ਲੋਕ ਪਰਲੋਕ ਵਿਚ) ਉਹੀ ਬਦਨਾਮੀ ਖੱਟਦੇ ਹਨ, ਅਤੇ ਭਿਆਨਕ ਨਰਕ ਵਿਚ ਪੈਂਦੇ ਹਨ ॥੬॥
ਹੇ (ਮੇਰੇ) ਮਨ! ਤੂੰ ਜਿਹੋ ਜਿਹੇ ਦੀ ਸੇਵਾ-ਭਗਤੀ ਕਰੇਂਗਾ, ਉਹੋ ਜਿਹੇ ਕਰਮ ਕਮਾ ਕੇ ਉਹੋ ਬਣ ਜਾਇਂਗਾ।
(ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਵਿਚ ਇਹ ਨਿਯਮ ਹੈ ਕਿ ਜੀਵ ਨੇ ਇਸ ਕਰਮ-ਭੂਮੀ ਸਰੀਰ ਵਿਚ) ਆਪ ਬੀਜ ਕੇ ਆਪ ਹੀ (ਉਸ ਦਾ) ਫਲ ਖਾਣਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ॥੭॥
(ਉੱਚੀ ਆਤਮਾ ਵਾਲੇ) ਮਹਾ ਪੁਰਖਾਂ ਦਾ ਬਚਨ ਕਿਸੇ ਪਰਸੰਗ ਅਨੁਸਾਰ ਹੋਇਆ ਹੈ।
ਉਹ ਮਹਾ ਪੁਰਖ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨਾਮ-ਰਸ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਸੇਵਾ ਆਦਿਕ ਦਾ ਲਾਲਚ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ (ਪਰ ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਪਾਸੋਂ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ) ॥੮॥
ਉਹ ਮਹਾ ਪੁਰਖ ਹੋਰਨਾਂ ਨੂੰ (ਭੀ ਨਾਮ ਜਪਣ ਦਾ) ਉਪਦੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਗੁਣ ਗ੍ਰਹਿਣ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਮਨੁੱਖ (ਉਹਨਾਂ ਪਾਸੋਂ) ਗੁਣ ਗ੍ਰਹਿਣ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।
ਸੋ, ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਉਹਨਾਂ ਮਹਾ ਪੁਰਖਾਂ ਦੀ ਸੰਗਤਿ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਵੱਡੇ ਭਾਗਾਂ ਵਾਲੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਭੀ ਹਰ ਵੇਲੇ ਨਾਮ ਜਪਣ ਲੱਗ ਪੈਂਦੇ ਹਨ ॥੯॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਜਿਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਇਹ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਹੈ ਉਹ ਆਪ ਹੀ ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਰਿਜ਼ਕ ਅਪੜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਉਹੀ ਆਪ ਸਭ ਦਾਤਾਂ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਉਹ ਮਾਲਕ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ (ਭੀ) ਹੈ ॥੧੦॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਉਹ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤੇਰੇ ਅੰਗ-ਸੰਗ ਵੱਸਦਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਪੈ ਕੇ ਤੂੰ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਅੱਖੀਂ ਵੇਖ ਲੈ।
(ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਉਤੇ ਉਹ) ਆਪ ਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪ ਹੀ (ਆਪਣੇ ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ) ਜੋੜ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਭਾਈ! ਉਸ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਸਦਾ ਆਪਣੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਵਸਾਈ ਰੱਖ ॥੧੧॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਉਹ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਪਰਮਾਤਮਾ (ਸਦਾ) ਪਵਿਤ੍ਰ ਹੈ, (ਜਦੋਂ ਤਕ ਮਨੁੱਖ ਦਾ) ਮਨ (ਵਿਕਾਰਾਂ ਨਾਲ) ਮੈਲਾ ਰਹੇ, ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਾਲ ਮਿਲਾਪ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ।
ਜੀਵ ਤਦੋਂ ਹੀ ਉਸ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਮਿਲ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਉਸ ਦੇ ਅੰਦਰ ਦੀ ਹਉਮੈ ਸਾੜ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਂਦਾ ਹੈ ॥੧੨॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਜੇ ਉਹ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਭੁੱਲ ਜਾਏ, ਤਾਂ ਜਗਤ ਵਿਚ ਜੀਊਣਾ ਫਿਟਕਾਰ-ਜੋਗ ਹੈ।
ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਉਤੇ ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਮੇਹਰ ਦੀ ਨਿਗਾਹ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭੂ ਨਹੀਂ ਭੁੱਲਦਾ। ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੀ ਮਤਿ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ ਹਰਿ-ਨਾਮ ਵਿਚ ਸੁਰਤ ਜੋੜਦਾ ਹੈ ॥੧੩॥
ਹੇ ਭਾਈ! (ਅਸਾਂ ਜੀਵਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਆਪਣਾ ਜ਼ੋਰ ਨਹੀਂ ਚੱਲ ਸਕਦਾ) ਜੇ ਗੁਰੂ (ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲ) ਮਿਲਾ ਦੇਵੇ, ਤਾਂ ਹੀ ਮੈਂ ਮਿਲਿਆ ਰਹਿ ਸਕਦਾ ਹਾਂ, ਅਤੇ ਉਸ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਟਿਕਾ ਕੇ ਰੱਖ ਸਕਦਾ ਹਾਂ।
ਹੇ ਭਾਈ! ਗੁਰੂ ਦੇ ਪਿਆਰ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਪ੍ਰਭੂ-ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਮਿਲ ਜਾਏ, ਉਹ ਫਿਰ ਕਦੇ ਉਥੋਂ ਨਹੀਂ ਵਿਛੁੜਦਾ ॥੧੪॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਵਿਚ ਸੁਰਤ ਜੋੜ ਕੇ ਤੂੰ ਭੀ ਆਪਣੇ ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਿਆ ਕਰ।
ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਮਿਲ ਕੇ ਜਿਸ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੇ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਿਆ, ਉਸ ਨੇ (ਲੋਕ ਪਰਲੋਕ ਵਿਚ) ਸੋਭਾ ਖੱਟ ਲਈ ॥੧੫॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਤੁਰਨ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦਾ ਮਨ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਨਾਮ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਭਿੱਜਦਾ (ਹਰਿ-ਨਾਮ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਨਹੀਂ ਪਾਂਦਾ)। ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਮਨ ਵਿਚ ਮੈਲੇ ਅਤੇ ਕਠੋਰ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ।
ਜੇ ਸੱਪ ਨੂੰ ਦੁੱਧ ਭੀ ਪਿਲਾਇਆ ਜਾਏ, ਤਾਂ ਭੀ ਉਸ ਦੇ ਅੰਦਰ ਨਿਰੋਲ ਜ਼ਹਿਰ ਹੀ ਟਿਕਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ॥੧੬॥
ਹੇ ਭਾਈ! (ਸਭ ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਵਿਆਪਕ ਹੋ ਕੇ ਸਭ ਕੁਝ) ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਹੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਕਿਸ ਨੂੰ (ਚੰਗਾ ਜਾਂ ਮੰਦਾ) ਆਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ? (ਕੁਰਾਹੇ ਪਏ ਜੀਵਾਂ ਉਤੇ ਭੀ) ਉਹ ਆਪ ਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈ।
ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ (ਕਿਸੇ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਮਨ ਦੀ) ਮੈਲ ਲਹਿ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਸ ਦੇ ਆਤਮਾ ਨੂੰ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ ਸੁੰਦਰਤਾ ਮਿਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ॥੧੭॥
ਹੇ ਭਾਈ! (ਹਰਿ-ਨਾਮ-ਸਰਮਾਏ ਦਾ ਮਾਲਕ) ਸ਼ਾਹ-ਪ੍ਰਭੂ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਉਸ ਦੇ ਨਾਮ ਦਾ ਵਣਜ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਭੀ ਅਟੱਲ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਵਾਲੇ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਪਰ ਉਸ ਸ਼ਾਹ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚ ਕੂੜੀ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਵਣਜਾਰੇ ਨਹੀਂ ਟਿਕ ਸਕਦੇ।
ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਨਾਮ ਪਸੰਦ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ, ਤੇ, ਉਹ ਸਦਾ ਦੁੱਖ ਵਿਚ ਹੀ ਖ਼ੁਆਰ ਹੁੰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ॥੧੮॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਹਉਮੈ (ਦੀ ਮੈਲ) ਨਾਲ ਮੈਲਾ ਹੋਇਆ ਹੋਇਆ ਜਗਤ ਭਟਕ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਮੁੜ ਮੁੜ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੇ ਗੇੜ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ,
ਪਿਛਲੇ ਜਨਮਾਂ ਦੇ ਕੀਤੇ ਕਰਮਾਂ ਦੇ ਸੰਸਕਾਰਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਓਹੋ ਜਿਹੇ ਹੀ ਹੋਰ ਕਰਮ ਕਰੀ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। (ਕਰਮਾਂ ਦੀ ਬਣੀ ਇਸ ਫਾਹੀ ਨੂੰ) ਕੋਈ ਮਿਟਾ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ ॥੧੯॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਜੇ ਮਨੁੱਖ ਸਾਧ ਸੰਗਤਿ ਵਿਚ ਟਿਕਿਆ ਰਹੇ, ਤਾਂ ਇਸ ਦਾ ਪਿਆਰ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਵਿਚ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਹੇ ਭਾਈ! ਤੂੰ (ਸਾਧ ਸੰਗਤਿ ਵਿਚ ਟਿਕ ਕੇ) ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਿਆ ਕਰ, ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਨ ਵਿਚ ਵਸਾ ਲੈ, (ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ) ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਰ ਤੇ ਸੁਰਖ਼-ਰੂ ਹੋਵੇਂਗਾ ॥੨੦॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਪੂਰੇ ਗੁਰੂ ਦੀ ਮਤਿ ਉਕਾਈ-ਹੀਣ ਹੈ। (ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੀ ਪੂਰੀ ਮਤਿ ਲੈ ਕੇ) ਦਿਨ ਰਾਤ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਦਾ ਹੈ,
ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਹਉਮੈ ਅਤੇ ਮਮਤਾ ਦੇ ਵੱਡੇ ਰੋਗ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰੋਂ ਰੋਕ ਦੇਂਦਾ ਹੈ ॥੨੧॥
ਹੇ ਭਾਈ! (ਜੇ ਪ੍ਰਭੂ ਮੇਹਰ ਕਰੇ, ਤਾਂ) ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ਕਰਾਂ, ਨਿਊਂ ਨਿਊਂ ਕੇ ਮੈਂ ਗੁਰੂ ਦੀ ਚਰਨੀਂ ਲੱਗਾਂ,
ਆਪਣੇ ਅੰਦਰੋਂ ਹਉਮੈ ਦੂਰ ਕਰ ਕੇ ਆਪਣਾ ਮਨ ਆਪਣਾ ਤਨ ਗੁਰੂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿਆਂ, ਗੁਰੂ ਦੇ ਅੱਗੇ ਰੱਖ ਦਿਆਂ ॥੨੨॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਡਾਂਵਾਂ-ਡੋਲ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਰਿਹਾਂ ਖ਼ੁਆਰ ਹੋਈਦਾ ਹੈ। ਇਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਾਲ ਹੀ ਸੁਰਤ ਜੋੜੀ ਰੱਖ।
ਆਪਣੇ ਅੰਦਰੋਂ ਹਉਮੈ ਦੂਰ ਕਰ, ਮਮਤਾ ਦੂਰ ਕਰ। (ਜਦੋਂ ਮਨੁੱਖ ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ) ਤਦੋਂ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਵਿਚ ਲੀਨ ਹੋਇਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ॥੨੩॥
ਹੇ ਭਾਈ! (ਮੇਰੇ) ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਭਰਾ ਹਨ, ਜੇਹੜੇ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਵਿਚ ਆ ਪਏ ਹਨ, ਅਤੇ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਦੀ ਬਾਣੀ ਵਿਚ ਚਿੱਤ ਜੋੜਦੇ ਹਨ।
ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਵਿਚ ਲੀਨ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਉਹ (ਫਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲੋਂ) ਨਹੀਂ ਵਿਛੁੜਦੇ। ਉਹ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਰ ਤੇ (ਟਿਕੇ ਹੋਏ) ਦਿੱਸਦੇ ਹਨ ॥੨੪॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਮੇਰੇ ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਭਰਾ ਹਨ ਸੱਜਣ ਹਨ, ਜੇਹੜੇ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸੇਵਾ-ਭਗਤੀ ਕਰਦੇ ਹਨ।
(ਗੁਣਾਂ, ਦੇ ਵੱਟੇ) ਅਉਗਣ ਵਿਕ ਜਾਣ ਨਾਲ (ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਣ ਨਾਲ) ਉਹ ਮਨੁੱਖ (ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਵਿਚ) ਪ੍ਰਫੁਲਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਗੁਣਾਂ ਨਾਲ ਸਾਂਝ ਪਾਂਦੇ ਹਨ ॥੨੫॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਗੁਰੂ ਨਾਲ (ਆਤਮਕ) ਸਾਂਝ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ (ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਅਟੱਲ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ ਭਗਤੀ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ।
ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਨਾਲ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਨਾਮ ਵਿਹਾਝਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਹਰਿ-ਨਾਮ (ਦਾ) ਲਾਭ ਖੱਟਦੇ ਹਨ ॥੨੬॥
ਹੇ ਭਾਈ! (ਕਈ ਕਿਸਮ ਦੇ) ਪਾਪ ਕਰ ਕਰ ਕੇ ਸੋਨਾ ਚਾਂਦੀ (ਆਦਿਕ ਧਨ) ਇਕੱਠਾ ਕਰੀਦਾ ਹੈ, ਪਰ (ਜਗਤ ਤੋਂ) ਤੁਰਨ ਵੇਲੇ (ਉਹ ਧਨ ਮਨੁੱਖ ਦੇ) ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦਾ।
ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਭੀ ਚੀਜ਼ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਜਾਵੇਗੀ। ਨਾਮ ਤੋਂ ਸੁੰਞੀ ਸਾਰੀ ਲੁਕਾਈ ਆਤਮਕ ਮੌਤ ਦੀ ਹੱਥੀ ਲੁੱਟੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ (ਆਪਣਾ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਲੁਟਾ ਬੈਠਦੀ ਹੈ) ॥੨੭॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਮਨ ਵਾਸਤੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਹੀ (ਜੀਵਨ-ਸਫ਼ਰ ਦਾ) ਖ਼ਰਚ ਹੈ। ਇਸ ਸਫ਼ਰ-ਖ਼ਰਚ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਸਾਂਭ ਕੇ ਰੱਖੋ।
ਇਹ ਖ਼ਰਚ ਕਦੇ ਮੁੱਕਣ ਵਾਲਾ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੇ ਦੱਸੇ ਰਸਤੇ ਉਤੇ ਤੁਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦੇ ਨਾਲ ਇਹ ਸਦਾ ਲਈ ਸਾਥ ਬਣਾਂਦਾ ਹੈ ॥੨੮॥
ਜਗਤ ਦੇ ਮੂਲ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤੋਂ ਖੁੰਝੇ ਹੋਏ ਹੇ ਮਨ! (ਜੇ ਤੂੰ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖੁੰਝਿਆ ਹੀ ਰਿਹਾ, ਤਾਂ) ਆਪਣੀ ਇੱਜ਼ਤ ਗਵਾ ਕੇ (ਇਥੋਂ) ਜਾਵੇਂਗਾ।
ਇਹ ਜਗਤ ਤਾਂ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਫਸਿਆ ਪਿਆ ਹੈ (ਤੂੰ ਇਸ ਨਾਲ ਆਪਣਾ ਮੋਹ ਛੱਡ, ਅਤੇ) ਗੁਰੂ ਦੀ ਮਤਿ ਉਤੇ ਤੁਰ ਕੇ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਿਆ ਕਰ ॥੨੯॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਕਿਸੇ ਮੁੱਲ ਤੋਂ ਨਹੀਂ ਮਿਲ ਸਕਦਾ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ਬਿਆਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ।
ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਮਨ ਅਤੇ ਤਨ ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਵਿਚ ਰੰਗਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਸਦਾ ਪਰਮਾਤਮਾ ਵਿਚ ਲੀਨ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ॥੩੦॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਮੇਰਾ ਉਹ ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਆਨੰਦ-ਸਰੂਪ ਹੈ (ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਉਸ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਆ ਜੁੜਦਾ ਹੈ) ਉਸ ਨੂੰ ਉਹ ਆਤਮਕ ਅਡੋਲਤਾ ਵਿਚ, ਪ੍ਰੇਮ-ਰੰਗ ਵਿਚ ਰੰਗ ਦੇਂਦਾ ਹੈ।
ਜਦੋਂ ਕੋਈ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਉਸ ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਲੀਨ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਤਦੋਂ ਉਸ (ਦੀ ਜਿੰਦ) ਨੂੰ ਪ੍ਰੇਮ-ਰੰਗ ਚੜ੍ਹ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ॥੩੧॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਜੇਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਪੈਂਦੇ ਹਨ, ਉਹ (ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲੋਂ) ਚਿਰ ਦੇ ਵਿਛੁੜੇ ਹੋਏ ਭੀ (ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ) ਆ ਮਿਲਦੇ ਹਨ।
ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ (ਜੋ, ਮਾਨੋ, ਧਰਤੀ ਦੇ ਸਾਰੇ) ਨੌ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ (ਹੈ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ) ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਹੀ ਲੱਭ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਨਾਮ-ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਨੂੰ ਉਹ ਆਪ ਵਰਤਦੇ ਹਨ, ਹੋਰਨਾਂ ਨੂੰ ਵੰਡਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਫਿਰ ਭੀ ਨਹੀਂ ਮੁੱਕਦਾ। ਆਤਮਕ ਅਡੋਲਤਾ ਵਿਚ ਟਿਕ ਕੇ ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਗੁਣ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ॥੩੨॥
ਹੇ ਭਾਈ! (ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਆ ਪਏ) ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਨਾਹ ਜੰਮਦੇ ਹਨ ਨਾਹ ਮਰਦੇ ਹਨ, ਨਾਹ ਹੀ ਉਹ (ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੇ ਗੇੜ ਦੇ) ਦੁੱਖ ਸਹਾਰਦੇ ਹਨ।
ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਗੁਰੂ ਨੇ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਹੈ, ਉਹ (ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੇ ਗੇੜ ਤੋਂ) ਬਚ ਗਏ। ਉਹ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਜੁੜ ਕੇ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਮਾਣਦੇ ਹਨ ॥੩੩॥
ਹੇ ਭਾਈ! ਜੇਹੜੇ ਭਲੇ ਮਨੁੱਖ ਹਰ ਵੇਲੇ ਪ੍ਰਭੂ-ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਜੁੜੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਪ੍ਰਭੂ-ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਮਿਲ ਕੇ ਮੁੜ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਵਿਛੁੜਦੇ।
ਪਰ, ਹੇ ਨਾਨਕ! ਇਸ ਜਗਤ ਵਿਚ ਅਜੇਹੇ ਵਿਰਲੇ ਬੰਦੇ ਹੀ ਉੱਘੜਦੇ ਹਨ, ਜੇਹੜੇ ਸਦਾ-ਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਮਿਲਾਪ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ॥੩੪॥੧॥੩॥
Spanish Translation:
Rag Suji, Mejl Guru Amar Das, Tercer Canal Divino.
Un Dios Creador del Universo, por la Gracia del Verdadero Guru
No alabes al mundo que se va a ir;
no alabes a la gente que será reducida a polvo. (1)
¡Gloria a mi Señor Eterno!
A Él lo alabo, Él es el Verdadero Ser Autónomo.(1-Pausa)
Los arrogantes Manmukjs enamorados del mundo son consumidos por su propia ansiedad.
Son castigados en el recinto de Yama y no obtienen una oportunidad otra vez.(2)
Fructífera es la vida del ser consciente en Dios cuando está entonado en la Palabra del Shabd.
Su interior está iluminado por el Señor Todo Prevaleciente y ahí habita en la Paz de su Ser. (3)
La ansiedad de los que abandonan la Palabra del Shabd del Guru
y aman a otro que no sea Dios, se vuelve constante, ya que son quemados por el fuego de sus deseos. (4)
Ellos aman a los malhechores y sienten celos de los Santos.
Ellos mismos pierden el mérito de la vida y hacen que todas sus generaciones sean destruidas.(5)
No es bueno calumniar a nadie; sólo los tontos y arrogantes Manmukjs se atreven,
sus semblantes son negrecidos y son arrojados a las oscuras profundidades de su propia conciencia. (6)
La mente se vuelve como su pensamiento y actúa de tal forma.
Lo que sea que uno siembra, eso cosecha; ¿qué más puede uno decir acerca de esto?(7)
Los hombres grandiosos hablan siempre por el bien de otros;
son las Piscinas de Néctar y la avaricia nunca los seduce.(8)
El hombre de Mérito obtiene la Virtud e instruye a otros a su manera.
Afortunados son los que aprenden de tal ser, porque viven siempre en el Naam, el Nombre del Señor.(9)
Aquél que creó la Tierra también la sostiene,
pues el Uno Solo, es el Dador, el Dios, el Maestro Verdadero.(10)
Ese Uno Verdadero está en ti; trata de lograr Su Visión por la Gracia del Guru.
A Aquél que te bendice con Su Perdón y te une a Su Ser, Alábalo.(11)
La mente es impura; ¿cómo es que se puede unir con la Verdad Inmaculada del Señor?
Si el Señor Mismo lo une a Su Ser a través de Su Palabra quema su ego negativo.(12)
Maldita es la existencia en el mundo si uno abandona al Verdadero Uno,
pero si el Señor le tiene Compasión, uno Lo alaba y puede meditar en la Palabra del Shabd del Guru. (13)
Si el Guru Verdadero nos une con el Señor, alabamos al Uno Verdadero en la mente.
Una vez unidos, ya no nos separamos y así vivimos bendecidos con el Amor del Guru.(14)
Así alabamos al Señor Bienamado meditando en la Palabra del Shabd del Guru.
Obteniendo al Señor Bienamado, nosotros, Sus esposas, logramos la Felicidad y la Gloria.(15)
La mente del ególatra no es atraída por la Palabra del Shabd, pues es dura e impía.
Es como la serpiente que, aunque sea alimentada de leche, no pierde su gusto por morder.(16)
Cuando el Señor Mismo lo hace todo y Él Mismo perdona todo, ¿a quién más le podemos ir a preguntar?
Él es el Señor Perdonador, mediante las Enseñanzas del Guru la mugre es lavada y es Embellecido con la Verdad. (17)
Verdad es el Rey Mercader, Verdaderos los que lo atienden, y los falsos no están aprobados en la Corte del Señor,
pues no aman la Verdad del Señor y son consumidos por el dolor de la maldad. (18)
El mundo entero vaga en la suciedad del egoísmo, y nace para morir y muere para nacer una y otra vez
de acuerdo al Karma de sus pasadas acciones, el cual nadie puede borrar. (19)
Si uno se une a la Saad Sangat, la Sociedad de los Santos, uno ama la Verdad del Señor,
alaba al Uno Verdadero, Lo eleva en su mente y es aclamado Verdadero en la Corte del Señor. (20)
Maravillosa es la Sabiduría del Guru Perfecto que nos guía en la meditación del Naam,
pero infectados por la gran maldad del ego, somos impedidos desde el interior a seguir el Sendero del Señor.(21)
Con toda humildad alabo siempre a mi Guru y me postro a Sus Pies.
Entregándole mi cuerpo y mi mente, anulo mi ego negativo. (22)
Torcido por la lucha interna uno es destruido; mejor entona tu ser en el Señor
y disipa tu idea de “lo mío” para que te fundas en la Verdad del Señor. (23)
Aquéllos que encuentran al Verdadero Guru son como hermanos, viven entonados en el Verdadero Guru.
. Los que se aferran a la Verdad del Señor, ya no se encuentran más separados del Señor y prueban ser Verdaderos en la Corte Divina. (24)
Los que viven en el Uno Verdadero son nuestros hermanos y amigos,
ellos queman sus errores como paja y en sus vidas conservan siempre la Virtud.(25)
La Dicha llega a sus mentes y se dedican a la Alabanza Verdadera del Señor.
A través de la Palabra del Shabd del Guru ellos comercian sólo en la Verdad y cosechan el Fruto del Nombre del Señor.(26)
Usando conductas dudosas obtenemos plata y oro, pero éstos no se van con nosotros al final.
Sin el Nombre del Señor de nada nos sirven y somos engañados por la muerte. (27)
El alimento de la mente es el Nombre del Señor; Alábalo en tu ser.
Este Tesoro nunca se agota y se conserva en aquéllos Gurmukjs que ven hacia Dios. (28)
La mente, desviada por el mismo Dios, deja el mundo sin Honor.
¡Tantos son engañados por el amor al otro! Es mejor vivir en el Verdadero Señor a través de la Palabra del Shabd del Guru. (29)
Uno no puede evaluar al Señor; nadie puede escribir la Alabanza entera del Señor.
Si el cuerpo y la mente están imbuidos en la Palabra del Shabd del Guru, uno se inmerge en Dios. (30)
Nuestro Señor es Maravilloso; Él nos llena con Su Amor espontáneamente.
Sí, la Esposa está imbuida en el Amor del Señor y se inmerge profundamente en Su Ser. (31)
Aquéllos que sirven al Guru Verdadero se unen con su Dios, sin importar qué tan larga haya sido su separación
En su interior alaban el Tesoro Inexhausto del Nombre Ambrosial y de forma espontánea habitan en Su Alabanza. (32)
Ellos ya no vuelven a nacer ni mueren ni sufren dolor;
sí, a quien sea que el Guru salva se regocija en la Dicha de su Señor. (33)
Los que están unidos con nosotros son nuestros compañeros eternos para no separarse jamás.
Sin embargo, escasos son aquéllos que logran la Verdad de Dios.(34-1-3)
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Saturday, 26 February 2022